हिन्दी ध्वनि और वर्णमाला: स्वर, व्यंजन, उच्चारण स्थान और मात्राएँ का संपूर्ण विवरण

by Sushant Sunyani

ध्वनियों का उच्चारण करते समय हम मुँह के निम्न अंगों को काम में लाते हैं

ध्वनि उच्चारण में सहायक मुख के प्रमुख अंग

  1. ओंठ (दोनों)

  2. ऊपरी दाँत

  3. वर्क्स (मसूड़ा)

  4. कठोर तालु (मसूड़े के पीछे का कठोर भाग)

  5. मूर्धा (कठोर तालु और कोमल तालु का मिलनस्थल)

  6. कोमल तालु (मूर्धा के पीछे का कोमल भाग)

  7. अलिजिह्वा या कौआ (कोमल तालु के अंतिम छोर पर लटकता हुआ मांस खंड)

  8. जिह्वा (जीभ)

  9. स्वरयंत्रावरण

  10. उपालिजिह्वा (गलबिल)

  11. स्वरयंत्र

  12. काकल (स्वरयंत्रमुख)

फेफड़ों से निकलने वाली हवा और मुख के अंग मिलकर सभी ध्वनियों का निर्माण करते हैं।

हिन्दी की ध्वनियाँ और वर्णमाला

उच्चारण की दृष्टि से हिन्दी की ध्वनियाँ दो प्रकार की हैं

स्वर और व्यंजन

स्वर : जिनके उच्चारण में वायु का कोई अवरोध नहीं होता

अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ

व्यंजन : जिनमें वायु का आंशिक या पूर्ण अवरोध होता है

‘क’ वर्ग – क ख ग घ ङ

‘च’ वर्ग – च छ ज झ ञ

‘ट’ वर्ग – ट ठ ड ढ ण (ड़ ढ़)

‘त’ वर्ग – त थ द ध न

‘प’ वर्ग – प फ ब भ म

अन्तस्थ – य र ल व

ऊष्म – श ष स ह

मिश्र व्यंजन – क्ष (क् + ष ), त्र (त् + र), ज्ञ (ज् + ञ), श्र (श् + र)

अयोगवाह – ‘.’ (अनुस्वार) ‘:’ (विसर्ग)

क्योंकि ‘.’ और ‘:’ स्वर या व्यंजन नहीं हैं, फिर भी उनके साथ आते हैं।

चंद्रबिंदु (ँ) – केवल स्वरों के साथ प्रयुक्त होता है।

जैसे- अँ आँई उँ ऊँ एँ

सामान्यतः ये अधूरे (आधे) रूप में ही उच्चरित होते हैं। इन्हें पूर्ण रूप से उच्चरित करने के लिए इनके साथ किसी स्वर का योग आवश्यक होता है, और वह स्वर सामान्यतः ‘अ’ होता है।

🔸 उदाहरण:
क = क् + अ
यहाँ ‘क्’ व्यंजन का अधूरा रूप है, जिसे हलन्त (्) चिह्न द्वारा दर्शाया जाता है।

विदेशी भाषाओं से आगत ध्वनियाँ

अरबी -फा रसी -तुर्की से आगत शब्दों में क ख ग ज़ फ़ ध्वनि याँ उच्चरि त हो ती हैं। अंग्रेजी से आगत शब्दों में ऑज़ फ का भी उच्चा रण हो ता
है।
स्वर
‘स्वर’ वे ध्वनि याँ हैं जि नके उच्चा रण में मुख वि वर से बा हर आती हवा का कहीं को ई अवरो ध नहीं हो ता ।

उदाहरण: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ आदि।

व्यंजन
व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में मुख विवर से बाहर निकलती हवा को कहीं न कहीं आंशिक या पूर्ण रूप से अवरोध का सामना करना पड़ता है

उदाहरण: क, ग, ट, त, प, म आदि।

हिन्दी स्वर और उनकी मात्राएँ

स्वर मात्रारूप उदाहरण
का
ि कि
की
कु
कू
(कोई विशेष रूप नहीं) कृ
के
कै
को
कौ

विशेष ध्वनि चिह्न और उनके उदाहरण

ध्वनि / चिह्न मात्रारूप / प्रतीक उदाहरण
अनुस्वार कं
विसर्ग कः
चन्द्रबिंदु आँ, हाँ
  • जब ‘र’ के साथ छोटा उकार (ु) जुड़ता है, तो वह ‘रु’ इस प्रकार लिखा जाता है। जैसे: रुपया, गुरु, तरुण
  • जब ‘र’ के साथ बड़ा ऊकार (ू) जुड़ता है, तो वह ‘रू’ इस प्रकार लिखा जाता है। जैसे: रूप, ज़रूर, अमरूद

वर्णों के दो-दो रूप

“कुछ वर्णों और अंकों के दो-दो रूप” हिंदी भाषा के शुद्ध लेखन में बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें यह बताया जा रहा है कि कुछ वर्ण (अक्षर) और अंक दो रूपों में लिखे जाते हैं:

  • एक होता है मानक रूप – जो सही, स्वीकृत और शुद्ध रूप होता है।

  • दूसरा होता है मानकेतर रूप – जो प्रचलन में भले हो, पर शुद्ध नहीं होता।

अर्द्धव्यंजन वर्ण

परिभाषा:
जब किसी व्यंजन में स्वर न जुड़ा हो, यानी वह पूर्ण उच्चारण न करे, तो वह अर्द्धव्यंजन कहलाता है। अर्द्धव्यंजन विशेष रूप से संधि और संयुक्ताक्षर बनाने में काम आते हैं।

हिंदी में चार प्रकार से अर्द्धव्यंजन बनाए जाते हैं:


🔹 1. कुछ वर्णों का हुक (पंक्ति का ऊपरी भाग) हटाकर

यह रूप नीचे लिखा जाता है जैसे:

  • क्, ग्, न्, त्, ब्
    (जैसे: क्त, ग्य, न्त, क्त)

उदाहरण:

  • शक्ति (श + क् + ति)

  • संग्या (स + ग् + या)


🔹 2. कुछ वर्णों की ‘खड़ी पाई’ हटाकर

कुछ व्यंजनों की दाईं ओर की खड़ी रेखा हटाकर अर्द्धरूप बनाया जाता है:

  • प, फ, ब, भ, म
    (बिना खड़ी पाई के: प्, फ्, ब्, भ्, म्)

उदाहरण:

  • प्रार्थना (प् + रा + र्थ + ना)

  • भ्रम (भ् + रम)


🔹 3. कुछ वर्णों के नीचे ‘हल्’ चिह्न (्) लगाकर

यह व्यंजन को अर्द्ध बनाता है। नीचे हलंत (्) चिह्न देकर संकेत मिलता है कि उस पर कोई स्वर नहीं जुड़ा है।

उदाहरण:

  • द् + व = द्व

  • छ् + त = छ्त

  • ह् + न = ह्न


🔹 4. ‘र’ के विशेष रूप

‘र’ जब संयुक्ताक्षर में पहले या बाद में आता है तो उसके विशेष रूप बनते हैं:

स्थिति रूप
‘र’ पहले रेफ (जैसे: र्क, क्र, ग्र) – र् + क = र्क
‘र’ बाद में र्फ़ (जैसे: त्र, द्र) – त + र = त्र, द + र = द्र

उदाहरण:

  • क्रांति (क् + रा + न् + ति)

  • द्रव्य (द् + र + व्य)

ध्वनि यों का उच्चारण

स्वरों का उच्चारण

स्वरों के उच्चा रण में जि ह्वा ही सक्रि य रहती है। कभी जी भ का अगला भा ग, कभी मध्य भा ग या कभी पि छला भा ग उच्चा रण में सहा यक
हो ता है। इस प्रका र स्वरों के ती न भेद हो ते हैं-
१ – अग्र स्वर – इ, ई, ए ऐ
२-  मध्य स्वर – अ
३ – पश्च स्वर – उ ऊ ओ औ आ
स्वरों के उच्चा रण में लगनेवा ले समय के आधा र पर स्वर दो प्रका र से उच्चरि त हो ते हैं।
१ – हस्व स्वर – अ इ उ ऋ
२ – दी र्घ स्वर – आ ई ऊ ए ऐ ओ औ
हस्व स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है। दीर्घ स्वरों के उच्चारण में हस्व स्वरों की तुलना में दुगुना समय लगता है। ‘ऋ’ का
उच्चारण स्वर न हो कर व्यंजन ‘रि ‘ की तरह हो ता है। फिर भी वर्णमाला में यह स्वर के रूप में गृहीत है। इसे हस्वस्वर माना जाता है।

व्यंजनों का उच्चारण

व्यंजनों के उच्चारण में उनके स्थान और उच्चारण की चेष्टाएँ या प्रयत्न मुख्य हो ते हैं।
१ – उच्चारण स्थान

ओंठ, दाँत, वर्क्स (मसूड़ा), मूर्धा , तालु कण्ठ और काकल स्थान हैं। इनके आधार पर व्यंजन द्व्योष्ठ्य, दन्त्योष्ठ्य, दंत्य, वर्त्य,
मूर्धन्य, तालव्य, कण्ठ्य और काकल्य होते हैं।

२ – उच्चारण प्रयत्न

फेफडों से आनेवा ली हवा को विभिन्न रूप देने के लिए उच्चारण अवयव जो प्रयत्न करते हैं उन्हें उच्चारण प्रयत्न
कहते हैं।

स्पर्श, स्पर्शसंघर्षी , नासिक्य, पाश्विक, लुण्ठित, उत्क्षिप्त, संघर्षी और अर्द्धस्वर प्रयत्न हैं।

(i) स्पर्श मुख विवर में दो स्थानों को ‘स्पर्श’ कहते है।

अतएव क, त, प, ब आदि स्पर्श ध्वनि याँ हैं

(ii) स्पर्श संघर्षी – मुखविवर में हवा के रुकने के बाद घर्षण के साथ बाहर निकलने को ‘स्पर्शसंघर्षी’ कहते हैं, जैसे च, छ, ज, झ

(iii) नासिक्य – हवा के नासिका मार्ग से निकलने से ‘नासिक्य’ ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं, जैसे ङ, ञ, ण, न, म

(iv) पाश्विक – हवा के जिह्वा के किनारे (पार्श्व) से होकर निकलने से ‘पाश्विक’ ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं, जैसे: ल ।

(v) लुण्ठित – जीभ का अग्रभाव मसूड़े के पास दो तीन बार हिलने से लुण्ठित ध्यनि उच्चरित होती है, जैसे र

(vi) उत्क्षिप्त – जीभ की नोंक उलटकर कठोर तालु से टकराकर आगे की ओर फेंकी जाने से उत्क्षिप्त ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं, जैसे: ड़ ढ़।

(vii) संघर्षी – मुख का मार्ग संकीर्ण होने से हवा घर्षण (रगड़) खाकर निकलने से संघर्षी ध्वनियाँ उच्चरित होती हैं। ऐसी स्थिति में हवा में उष्णता आने से इन्हें ‘उष्म’ ध्वनि भी कहते हैं। श, ष, स ऐसी ध्वनियाँ हैं।

(viii) अर्द्धस्वर – इनके उच्चारण में स्वर और व्यंजन दोनों के लक्षण मिलते हैं, जैसे- य और व।

व्यंजनों के उच्चारण के और दो आधार भी हैं-

  • प्राणत्व और
  • स्वरतंत्रियों में कम्पन

(i) प्राणत्व या श्वास प्रवाह में शक्ति या मात्रा के आधार पर ध्वनियाँ अल्पप्राण

या महाप्राण होती हैं। क अल्पप्राण है। ख महाप्राण है। ह प्राण ध्वनि है।

(ii) स्वरयंत्र की स्वरतंत्रियों में कम्पन के आधार पर ध्वनियाँ अघोष या सघोष

होती हैं। क अघोष है, ग सघोष ।

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